
आज के समय में लोकतंत्र कहीं किसी देश में हो या ना हो पर चुनाव लगभग हर देश में होते हैं। आज हम आपको शाह टाइम्स विशलेषण के माध्यम से बताएंगें कि भारत और जर्मनी की चुनावी प्रक्रिया में क्या समानतायें और क्या अंतर है।
नई दिल्ली (Shah Times): आज के समय में लोकतंत्र कहीं किसी देश में हो या ना हो पर चुनाव लगभग हर देश में होते हैं। आज हम आपको शाह टाइम्स विशलेषण के माध्यम से बताएंगें कि भारत और जर्मनी की चुनावी प्रक्रिया में क्या समानतायें और क्या अंतर है।

भारत के मुकाबले जर्मनी में नहीं होती है चहलकदमी
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में आम दिनों की तरह चहलकदमी हो रही थी। सड़कों पर गाड़ियां रफ्तार भर रही थीं और फुटपाथ पर लोग घूम रहे थे। कुछ जगह पर पुलिस भी तैनात थी लेकिन माहौल देखकर इस बात का अंदाजा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि ये जर्मनी के लिए बेहद खास दिन है। दरअसल, इस दिन यहां संसदीय चुनावों के लिए मतदान हो रहा था।
भारत के मुकाबले जर्मनी में हो जाता है एक दिन में फैसला
भारत में जहां लोकसभा चुनाव के लिए कई चरणों में मतदान होते हैं और पूरी प्रक्रिया में लगभग डेढ़ महीने का समय लग जाता है वहीं, जर्मनी में संसदीय चुनाव एक दिन में ही पूरे हो जाते हैं। मतदान के बाद उसी दिन शाम से नतीजे आने की भी शुरुआत हो जाती है। यहां मतदान केंद्रों पर ही वोटों की गिनती की जाती है और फिर आंकड़े आगे भेज दिए जाते हैं।
भारत के मुकाबले कम है जर्मनी की आबादी
जर्मनी में एक दिन में संसदीय चुनाव पूरे होने की एक वजह यह भी है कि यहां पर मतदाताओं की संख्या भारत की तुलना में काफी कम है। भारत में पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों के दौरान पंजीकृत मतदाताओं की संख्या करीब 98 करोड़ थी। वहीं, जर्मनी में लगभग 5.9 करोड़ लोगों के पास ही वोट देने का अधिकार है। इसके अलावा, जर्मनी में चुनाव के दिन हिंसा का खतरा भी बेहद कम होता है। इसलिए एक दिन में चुनाव करवाना आसान हो जाता है।
जर्मनी में नहीं होती है भारत जैसी उत्सुकता
जर्मनी में चुनाव के नतीजों को लेकर भारत जितनी उत्सुकता भी नहीं रहती। इसकी वजह यह है कि यहां के चुनावी सर्वे काफी हद तक सटीक होते हैं। इससे लोगों को पहले ही एक अनुमान मिल जाता है कि किस पार्टी को कितने प्रतिशत वोट मिल रहे हैं।
बैलेट पेपर से होता है जर्मनी में चुनाव
जर्मनी में मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल नहीं होता। हालांकि, एक संक्षिप्त अवधि में ईवीएम का सीमित इस्तेमाल हुआ था। साल 1999 में यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनाव में पहली बार जर्मनी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की व्यवस्था लाई गई। संसदीय चुनावों में इसका पहला इस्तेमाल 2002 में हुआ। फिर 2005 के चुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल का दायरा और बढ़ा। इस साल हुए चुनाव में पांच जर्मन राज्यों में लगभग 20 लाख मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की थी। लेकिन फिर ईवीएम के इस्तेमाल को अदालत में चुनौती दी गई।
इसलिये हटाई गई ईवीएम व्यवस्था
राजनीतिक विज्ञानी योआखीम वीसनर और उनके बेटे, फिजिस्ट उलरिष वीसनर ने शिकायत की कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और वोटर यह नहीं देख सकता कि कंप्यूटर के भीतर उसके वोट का क्या हुआ। नतीजों में गड़बड़ी का भी जोखिम बताया गया।
2009 में अदालत ने सुनाया था ईवीएम के खिलाफ फैसला
इसके बाद 2009 में जर्मनी की सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया कि 2005 के चुनाव में इस्तेमाल हुए उपकरणों में कमियां थीं। कोर्ट ने माना कि वोटिंग मशीनें, चुनाव की पारदर्शिता से जुड़े संवैधानिक सिद्धांतों पर खरी नहीं उतरती हैं। यह जरूरी माना गया कि वोटिंग मशीनें संभावित गड़बड़ी या छेड़छाड़ के जोखिम से सुरक्षित हों, और इसकी प्रक्रिया पारदर्शी हो ताकि लोगों को समझ आए।
जर्मनी में अलग तरह से होता है चुनाव प्रचार
भारत में चुनाव के दौरान एक अलग ही माहौल होता है। प्रमुख नेताओं की बड़ी-बड़ी रैलियां और रोड शो होते हैं। सड़क-चौराहों पर बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर लगाए जाते हैं। इसके अलावा, लाउडस्पीकर जैसे माध्यमों से भी प्रचार किया जाता है। लेकिन जर्मनी में चुनाव प्रचार इससे काफी अलग होता है। यहां छोटे-छोटे कार्यक्रमों के जरिए मतदाताओं को आकर्षित किया जाता है। इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या बेहद सीमित होती है।