
कहते हैं हाथी के दांत दिखाने को कुछ होते हैं और खाने को कुछ हालांकि है यह एक मुहावरा लेकिन भारत की आर्थिक हकीकत भी इन दिनों कुछ ऐसी ही है।
नई दिल्ली (Shah Times): कहते हैं हाथी के दांत दिखाने को कुछ होते हैं और खाने को कुछ हालांकि है यह एक मुहावरा लेकिन भारत की आर्थिक हकीकत भी इन दिनों कुछ ऐसी ही है। भारत में लगातार अर्थव्यवस्था में कुछ ना कुछ बदलाव आता ही रहता है। आज शाह टाइम्स विशेष में हम इसी पर एक सटीक विश्लेषण करने जा रहे हैं।
जब भी विदेशों में भारत की बात होती है तो कहा जाता है कि भारत का बाजार बहुत बढ़ा है। जिस देश में डेढ़ अरब लोग हैं। उसे बड़े बाजार के रूप में देखा जाता रहा है। पर रिपोर्टें कहती हैं कि देश की आर्थिक तरक्की अमीरों तक ही सीमित रह गई है। इससे आय में असमानता बढ़ रही है। भारत की विकास दर के सामने यह एक बहुत बड़ी चुनौती होगी।
ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट से हुआ खुलासा
ब्लूम वेंचर्स की एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें खुलासा हुआ है कि असली उपभोक्ता वर्ग काफी छोटा है। 13 से 14 करोड़ भारतीय ही उपभोक्ता वर्ग में आते हैं। जिनके पास मूलभूत साधनों के लिए पर्याप्त पैसा है। रिपोर्ट के अनुसार 30 करोड़ लोग उभरते वर्ग में हैं लेकिन उनकी आय क्षमता सीमित है।
फाइनैंस कंपनी परफियोस और पीडब्ल्यूसी इंडिया की रिपोर्ट
फाइनैंस कंपनी परफियोस और पीडब्ल्यूसी इंडिया ने एक रिपोर्ट जारी कर लिखा कि भारतीय लोग अपने जरूरत पर सबसे अधिक पैसे खर्च करते हैं जो कि उनके कुल खर्च का 39 प्रतिशत के लगभग होता है। रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि भारतीय उपभोक्ताओं ने 2023 में 29 प्रतिशत खर्च ही मूलभूत जरूरतों के लिये खर्च किया था जो कि ऑनलाइन गेमिंग का हिस्सा बाहर खाने के ऑर्डर करने से थोड़ा अधिक था।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में जारी की है चेतावनी
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती विकास के बीच संतुलन बनाने रखन की है। विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि बड़ी कंपनियां ऐसी नीतियों का समर्थन करती हैं, जो उन्हें लाभ पहुंचाती हैं। भारत में स्टार्टअप का माहौल अच्छा है। लेकिन कठिन बाजार परिस्थितियों की कमी के कारण ये तेजी से बढ़ नहीं पाते हैं।