
Leaders of the Muslim Personal Law Board addressing media on the launch of the nationwide protest against the Waqf Amendment Bill.
वक़्फ़ संशोधन बिल के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की घोषणा: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का बड़ा ऐलान
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक़्फ़ संशोधन बिल को धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान पर हमला बताते हुए देशव्यापी शांतिपूर्ण आंदोलन की शुरुआत की है।
नई दिल्ली (Shah Times)। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में संसद द्वारा पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक को भारतीय संविधान, इस्लामी परंपराओं और धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर हमला करार दिया है। बोर्ड का मानना है कि यह बिल न केवल शरीयत और धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता के खिलाफ है, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव और देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब पर भी आघात करता है।
बोर्ड ने स्पष्ट किया कि वह इस संशोधन का विरोध करने के लिए देशव्यापी आंदोलन शुरू करेगा। यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार इस कानून को वापस नहीं ले लेती। इस निर्णय की घोषणा दिल्ली में आयोजित एक विशेष बैठक के दौरान की गई, जिसकी अध्यक्षता मौलाना ख़ालिद सैफुल्लाह रहमानी ने की।
न्यायिक और लोकतांत्रिक रास्तों से विरोध की रणनीति
बोर्ड के महासचिव मौलाना फज़ल रहीम मुजद्दिदी ने जानकारी दी कि वक़्फ़ संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। इसके साथ ही शांतिपूर्ण धरने, प्रदर्शन, प्रेस कॉन्फ्रेंस और काली पट्टी बांधकर प्रतीकात्मक विरोध जैसे लोकतांत्रिक तरीकों को अपनाया जाएगा।
प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन और गिरफ्तारी आंदोलन
देशभर के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु, पटना, लखनऊ और मलेरकोटला में बड़े स्तर पर प्रदर्शन होंगे। हर राज्य की राजधानी में मुस्लिम नेता प्रतीकात्मक गिरफ्तारियां देंगे। जिला स्तर पर भी धरनों का आयोजन किया जाएगा और राष्ट्रपति तथा गृहमंत्री को ज्ञापन सौंपे जाएंगे।


“वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” सप्ताह
आंदोलन का पहला चरण “वक़्फ़ बचाओ, संविधान बचाओ” अभियान के रूप में मनाया जाएगा, जो एक शुक्रवार से अगले शुक्रवार तक चलेगा। इस दौरान राउंड टेबल बैठकें, अन्य समुदायों से संवाद और भ्रांतियों को दूर करने के लिए तथ्यात्मक जानकारी साझा की जाएगी।
दिल्ली में विभिन्न धर्मों और उनके वक़्फ़ संस्थानों से जुड़े प्रतिनिधियों की विशेष बैठक का आयोजन भी प्रस्तावित है।
युवाओं से संयम और सतर्कता बरतने की अपील
मौलाना मुजद्दिदी ने युवाओं से अपील की कि वे संयम और धैर्य बनाए रखें। उन्होंने कहा, “किसी भी प्रकार की भावनात्मक प्रतिक्रिया से बचें जिससे विरोधी ताकतों को उकसाने का मौका मिले। यह आंदोलन केवल बोर्ड के निर्देशों के अनुसार संगठित और योजनाबद्ध तरीके से चलाया जाएगा।”
कुरआन की प्रेरणा: संघर्ष और सब्र
उन्होंने कुरआन की आयत का हवाला देते हुए कहा,
“जो लोग हमारी राह में प्रयास करते हैं, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएंगे…” (सूरह अल-अंकबूत 69)
बोर्ड ने भरोसा दिलाया कि हर प्रकार का बलिदान देने के लिए नेतृत्व तैयार है और इंसाफ पसंद ताकतों के साथ मिलकर इस ‘काले कानून’ के खिलाफ संघर्ष किया जाएगा।
सरकार का स्पष्ट रुख: वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक कदम
केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक को लेकर देशभर में जहां एक ओर कुछ मुस्लिम संगठनों ने विरोध जताया है, वहीं सरकार का कहना है कि यह संशोधन पूरी तरह से पारदर्शिता, प्रशासनिक सुधार और जवाबदेही की भावना से प्रेरित है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह संशोधन न तो किसी समुदाय के अधिकारों को कमजोर करता है, न ही धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात करता है। इसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि वक़्फ़ संपत्तियों का सही और सार्वजनिक हित में उपयोग हो, जिससे आम मुसलमानों को ही सबसे अधिक लाभ मिले।
वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा और उपयोगिता बढ़ाने की पहल
सरकार के अनुसार देशभर में लाखों एकड़ वक़्फ़ जमीन है, जिनका समुचित उपयोग और प्रबंधन लंबे समय से विवादों और भ्रष्टाचार के घेरे में रहा है। संशोधित विधेयक इन संपत्तियों के डिजिटल रिकॉर्ड, पारदर्शी लीज़ सिस्टम और जवाबदेह प्रबंधन के लिए रास्ता साफ करता है। इससे गरीबों, छात्रों और समाज के कमजोर वर्गों को वक़्फ़ संस्थाओं से मिलने वाले लाभ में वृद्धि होगी।
संविधान और धर्मनिरपेक्षता के दायरे में कानून
कानून मंत्रालय से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का सम्मान करता है और किसी भी धार्मिक आस्था में हस्तक्षेप नहीं करता। यह केवल प्रशासनिक सुधारों की बात करता है जिससे वक़्फ़ बोर्डों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाई जा सके।
राजनीति से ऊपर उठकर सुधार की जरूरत
सरकार का यह भी मानना है कि इस विधेयक को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए। यह किसी एक धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि देश के सभी नागरिकों के हित में है कि सार्वजनिक संपत्तियों का समुचित और जवाबदेह उपयोग हो।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार सभी संबंधित पक्षों से संवाद के लिए तैयार है, लेकिन सुधारों को रोका नहीं जा सकता क्योंकि यह जनहित और राष्ट्रहित का मामला है।
सरकार का रुख साफ है – सुधार जरूरी हैं, लेकिन संवाद के रास्ते भी खुले हैं। वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा और उचित उपयोग के लिए यह कानून एक नई दिशा तय कर सकता है, बशर्ते इसे सही नजरिए से देखा जाए और सभी पक्ष लोकतांत्रिक तरीके से अपने सुझाव रखें।
“वक़्फ़ संशोधन के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रव्यापी आंदोलन और आम मुसलमान”
भारत में वक़्फ़ संपत्तियां न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि यह मुस्लिम समाज की सामाजिक, शैक्षिक और धार्मिक जरूरतों को पूरा करने का ऐतिहासिक माध्यम भी रही हैं। हाल ही में संसद द्वारा पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक ने इस विरासत पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। इस संशोधन को लेकर जो चिंता मुस्लिम समाज और विशेष रूप से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने व्यक्त की है, वह सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अस्तित्व से जुड़ा प्रश्न बन चुका है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रव्यापी आंदोलन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह समुदाय अब मौन नहीं रहेगा। इस आंदोलन का उद्देश्य केवल एक बिल को वापस लेना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि भारत के मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को संविधानिक ढांचे के भीतर सुरक्षित रखा जाए।
यह भी सच है कि वक़्फ़ संपत्तियों पर समय-समय पर विवाद और दखलंदाजी होती रही है, लेकिन इस बार मामला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि नीतिगत स्तर पर परिवर्तन का है। बोर्ड का यह कहना पूरी तरह वाजिब है कि यह संशोधन शरीयत, धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान के मूल उसूलों से टकराता है।
आम मुसलमान की भूमिका और चिंता
इस आंदोलन में आम मुसलमान की भूमिका बेहद अहम है। मुस्लिम समाज के हर वर्ग—चाहे वह विद्यार्थी हो, कारोबारी हो, शिक्षक हो या गृहिणी—को यह समझना होगा कि यह मसला केवल वक़्फ़ संपत्तियों का नहीं, बल्कि उनके अधिकारों और पहचान की रक्षा का है। आम मुसलमान को बोर्ड की ओर से दी गई हिदायतों का पालन करते हुए शांतिपूर्ण, अनुशासित और लोकतांत्रिक तरीकों से इस संघर्ष का हिस्सा बनना चाहिए।
यह भी ज़रूरी है कि आंदोलन को केवल एक धार्मिक एजेंडा न बनाकर, इसे संविधान और नागरिक अधिकारों से जोड़कर प्रस्तुत किया जाए। जब मुस्लिम समाज अन्य धर्मों के लोगों के साथ संवाद करेगा और साझा मंच तैयार करेगा, तो आंदोलन की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता दोनों बढ़ेगी।
आगे की राह और उम्मीद
यह आंदोलन केवल विरोध की आवाज़ नहीं, बल्कि न्याय की मांग है। लोकतंत्र में असहमति का अधिकार मौलिक अधिकारों में शामिल है, और यदि यह असहमति शांतिपूर्ण हो, तो उसका असर गहरा और स्थायी होता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जो पहल की है, वह सिर्फ वक़्फ़ की सुरक्षा की नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान की मूल आत्मा की हिफाजत की भी पहल है।
आशा की जानी चाहिए कि सरकार इस जनभावना को गंभीरता से लेगी और सभी पक्षों से संवाद स्थापित कर एक समाधान की ओर अग्रसर होगी। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक हर इंसाफपसंद नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस संघर्ष में अपनी वैचारिक और नैतिक भूमिका निभाए।
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