
पुरोला के काश्तकारों ने डीएम से मुलाकात कर सौंपा ज्ञापन
जीआई टैग में भारी गोलमाल का आरोप ब्रांड रवांई का और नाम पहाड़ का दिया
उत्तराखंड के कुल 27 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग
उत्तरकाशी (चिरंजीव सेमवाल) । उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसे एक दिन में सबसे अधिक 18 जीआई प्रमाण पत्र मिले हैं। लेकिन देश विदेशों में अपनी विशिष्ट पहचान के लिए जाने जाने वाला रवांई घाटी के पुरोला के लाल चावल को अलग पहचान न मिलने से रामा-कमल सिराई के काश्तकारों में भारी नाराजगी है। पुरोला के स्थानीय नेता एवं काश्तकारों ने जिलाधिकारी से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा है।
ज्ञापन में कहा गया कि पुरोला घाटी को रामा सेराई व कमल सेराई नाम से ख्याति प्राप्त है । इस घाटी की प्रसिद्धि की प्रमुख बजह है सेराई का प्रसिद्ध चरधान यानी कि लाल चावल । अब इसी लाल चावल के साथ बड़ा खेला है गया है।
चरधान यानी कि लाल चावल सम्पूर्ण उत्तराखंड में केवल रवांई घाटी के पुरोला में ही पैदा होता है । इसके अलावा आंशिक रूप से चरधान मोरी व बड़कोट तहसील के कई गांवों सहित पहाड़ों में लगभग सभी जनपदों में उत्पादन होता , लेकिन जो स्वाद कमल और राम सेराई चरधान में है ओ अन्य लाल चावल में नहीं।
कास्तकारों का आरोप है किविभागीय अधिकारियों व एनजीओ की मिलीभगत से ये टैग किसी एनजीओ के नाम हुआ है जिसका पुरोला से सम्बंध नही है । जीआई टैग में विभागीय अधिकारियों व एनजीओं की मिलीभगत को लेकर भाजपा नेता राजपाल पंवार के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने जिलाधिकारी उत्तरकाशी से भेंटकर उन्हें ज्ञापन सौंपा । ज्ञापन में पुरोला के नाम जीआई टैग दिलवाले की मांग की गई । राजपाल पंवार, सुदामा प्रसाद बिजल्वाण, प्रगतिशील किसान श्यालिक राम नौटियाल , घनश्याम गैरोला, रामलाल नौटियाल , राजेन्द्र सिंह रावत, गगन नौटियाल, बलदेव, मेहरबान सिंह पंवार, देवें सिंह आदि।
उत्तराखंड राज्य को हाली में 18 जीआई प्रमाण पत्र मिले हैं । जहां तक लाल चावल की बात है तो तराई क्षेत्रों में लाल चावल उत्पादन नहीं होता बल्कि पहाड़ों में होता है। इस बार उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादन होने वाले लाला चावल को जीआई टैग मिला है। उन्होंने कहा कि यदि रवांई घाटी के राम -कमल सिराई में लाल चावल की अन्य लाल चावल की पहचान बेहतरीन है तो वह पुनः अप्लाई कर सकते हैं। जिससे कि उनको रवांई घाटी पुरोला के लाल चावल की अलग से पहचान मिल सके।
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पुरोला के कास्तकारों का कहना है कि रवांई घाटी के रामा-कमल सिरांई कास्तकार संघ के अध्यक्ष श्यालिकराम, बलवंत सिंह रावत, पूर्व जिला पंचायत सदस्य गोविंद राम नौटियाल, शंभू प्रसाद नौटियाल, ललित प्रसाद आदि किसानों कहा कि पिछले दिनों उत्तराखंड में 18 जीआइ रजिस्ट्रेशन से सूबे के काश्तकारों को बड़ा गर्व हुआ था । बाद में अध्ययन से पता चला उत्तराखंड के कुछ उत्पादों के जीआइ रजिस्ट्रेशन में भारी लापरवाही बरती गई है और भ्रामक त्रुटि की गई है। जिस कारण रवांई घाटी का लाल चावल वंचित रहा है। उन्होंने कहा कि रवांई के लाल चावल ब्रांड रवांई का और नाम पहाड़ का दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि राज्य को जो 18 नए जी.आई प्रमाण पत्र मिले हैं उनमें उत्तराखंड चौलाई, झंगोरा, मंडुआ, लाल चावल, अल्मोड़ा लखोरी मिर्च, बेरीनाग चाय, बुरांस शरबत, रामनगर नैनीताल लीची, रामगढ़ आडू, माल्टा, पहाड़ी तोर, गहत, काला भट्ट, बिच्छूबूटी फैब्रिक, नैनीताल मोमबत्ती, कुमांऊनी रंगवाली पिछोड़ा, चमोली रम्माण मास्क तथा लिखाई वुड कार्विंग शामिल हैं।
जबकि उत्तराखंड के नौ उत्पादों तेजपात, बासमती चावल, ऐपण आर्ट, मुनस्यारी का सफेद राजमा, रिंगाल क्राफ्ट, थुलमा, भोटिया दन, च्यूरा ऑयल तथा ताम्र उत्पाद को पहले ही जी.आई टैग प्राप्त हो चुका है। अब तक उत्तराखंड के कुल 27 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।
क्या कहना अधिकारियों का
रवांई के लाल चावल अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं हमने जिले के गंगा घाटी के कास्तकारों को प्रोत्साहन देकर लाल चावल उत्पादन किरने का प्रयास किया जो काफी सफल हुआ। जब जीआई टैग पर पर पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी