
Afghanistan
नई दिल्ली (Shah Times): अक्सर एक बात सामने आती है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। (Afghanistan) अफगानिस्तान के साथ वीजा डिपलोमैसी शुरू करने के पीछे का कारण बहुत बड़ी कूटनीतिक चाल है। आपको याद होगा कुछ दिन पहले ही अफगानिस्तान की सरकार की चीन से बातचीत चल रही थी। आप इसके मायने समझ सकते हैं। चीन अफगानिस्तान में सेना का बेस चाहता है ताकि भारत पर दबाव बनाया जा सके।
चीन की यह वैसी ही चाल थी जैसी चीन कई सालों से बलूचिस्तान में रहकर पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ रच रहा है। आपको बता दें कि इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया है, जो निवेशकों, कलाकारों, एथलीटों, छात्रों और इलाज के लिए आने वाले मरीजों और उनके अटेडेंड के साथ ही संयुक्त राष्ट्र राजनयिक वीजा के लिए आवेदन की अनुमति देता है। यह ऐसे समय में हो रहा है, जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा हुआ है।
नई दिल्ली ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन यह कदम भारत और तालिबान के बीच बढ़ते कूटनीतिक संबंधों के बीच उठाया गया है। इसी महीने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर बात की थी। काबुल में तालिबान की वापसी के बाद यह दोनों देशों के बीच पहली मंत्री स्तरीय वार्ता थी।
अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा हुए करीब चार साल बीत चुके हैं। 15 अगस्त, 2021 में तालिबान ने गनी की सरकार को गिराकर काबुल पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद दुनिया के लगभग सभी देशों ने तालिबान में अपने दूतावास बंद कर दिए थे। अब दुनिया का रुख तालिबान की प्रति बदल रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बीते साल रूस द्वारा तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटाना था। 2003 में रूस ने तालिबान को आतंकी संगठन घोषित किया था, लेकिन दिसंबर, 2024 में रूस ने तालिबान को इस सूची से हटा दिया था।
आपको बता दें कि भारत-अफगानिस्तान के बीच ऐतिहासिक संबंध रहे हैं और अशरफ गनी की सरकार के समय दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते भी बेहतर थे। लेकिन तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद भारत ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को खत्म कर लिया। हालांकि, अब वक्त बदल रहा है। अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के साथ भारत की बातचीत की शुरुआत इसी साल जनवरी में हुई थी।
जनवरी में विक्रम मिसरी और मुत्ताकी के बीच दुबई में बातचीत हुई थी। अब विदेश मंत्री जयशंकर ने खुद तालिबान के विदेश मंत्री से बातचीत की थी। हालांकि, अभी तक भारत की ओर से औपचारिक रूप से तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ही पाकिस्तान से उसकी ठनी हुई है। भारत-अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच शुरू हो रही यह बातचीत पाकिस्तान जैसे दुश्मन को रणनीतिक रूप से घेरने के रूप में देखी जा रही है। अफगानिस्तान ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा की थी। इसके बाद जब पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि भारत ने अफगानिस्तान को निशाना बनाकर मिसाइल हमला किया, तो खुद तालिबान की सरकार ने इसका खंडन कर दिया था।
आपको बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही बीजिंग में पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी, और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने मिलकर अपने-अपने देशों में व्यापार, बुनियादी ढांचे और विकास को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श किया था। बैठक के बाद, इशाक डार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए एक साथ खड़े हैं।” यह बैठक तीन देशों के बीच सहयोग को और मजबूत करने का संकेत देती है, लेकिन भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण कदम हो सकता है।
हालांकि आपको बता दें इस बैठक को फेल करने के लिये भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले ही मन बना चुके थे। भारत ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के किसी तीसरे देश में विस्तार पर कड़ा विरोध जताया था। भारत का कहना है कि CPEC का एक हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, और इसे भारत अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले साल कहा था कि जो भी देश CPEC प्रोजेक्ट में शामिल होंगे, वे जम्मू-कश्मीर में भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करेंगे। भारत ने इस कारण से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने से इंकार कर दिया है, जो कि लगभग 60 बिलियन डॉलर का एक विशाल प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट में पाकिस्तान के जरिए एक बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास कार्य किए जाने हैं, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।
इसके अतिरिक्त आपको याद होगा कि भारत-अफगानिस्तान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर भी साझेदारी है। वहीं इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को लेकर भी दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। यह कॉरिडोर भारत से लेकर ईरान, रूस होते हुए यूरोप को जोड़ने वाला है। इस तरह दो अहम प्रोजेक्ट्स में दोनों देश साथ हैं और पाकिस्तान के साथ दोनों के ही संबंध सहज नहीं हैं।