
मणिपुर जो देश की पूर्वोतर का ही नहीं बल्की भारत का एक महत्वपूर्ण अंग है। मणिपुर पीछले एक साल से भी ज्यादा समय से हिंसा की आग में जल रहा है।
इंफाल (Shah Times): मणिपुर जो देश की पूर्वोतर का ही नहीं बल्की भारत का एक महत्वपूर्ण अंग है। मणिपुर पीछले एक साल से भी ज्यादा समय से हिंसा की आग में जल रहा है। अभी फरवरी में ही मणिपुर में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन की घोषणा की है। ऐसे में सवाल है कि क्या आने वाले समय में मणिपुर फिर से पटरी पर लौट पाएगा। क्या यहां के लोग फिर से आम जिंदगी बसर कर पायेंगे। आज शाह टाइम्स के विशेष में आप जानेंगे कि मणिपुर में कितना सुधार होने की संभावनायें हैं और वो कोन-कोन से पहलु हैं जो मणिपुर के लोगों की जिंदगी को फिर से पटरी पर ला सकते हैं।
केंद्र सरकार लगातार कर रही है बैठकें

मणिपुर की स्थिति को सुधारने के लिये भारत सरकार और राज्य के प्रशासन में बैठकों का दौर जारी है। भारत के गृह मंत्री के साथ इस बैठक में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला के अलावा सुरक्षा बलों और प्रशासन के तमाम शीर्ष अधिकारी मौजूद रहे। बैठक में राज्य की प्रगति पर संतोष जताते हुए कहा गया कि प्रशासन की सबसे पहली प्राथमिकता उन हथियारों की वापसी है जिनको हिंसा शुरू होने के बाद अलग-अलग शहरों में थानों और सरकारी शस्त्रागारों से लूटा गया था।
हथियारों को खुद जमा करवाने के हैं निर्देश
राज्यपाल ने तमाम भूमिगत और उग्रवादी संगठनों को इन लूटे गए हथियारों की वापसी के लिए एक सप्ताह का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा था कि उसके बाद बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई शुरू की जाएगी। लेकिन उस दौरान करीब चार सौ हथियार ही जमा हुए। उसके बाद यह समयसीमा छह मार्च तक बढ़ा दी गई है। अब यह एक सीधा संदेश है कि अगर प्रशासन की बात जिसने भी नहीं मानी वो अंजाम भुगतने के लिये तैयार रहे।
संगठन मांग रहे हैं विचार विमर्श के लिये समय
इस पूरे मामले के पीछे दलील दी गई है कि कई संगठनों ने हथियार लौटाने से पहले आपस में विचार-विमर्श के लिए समय की मांग की है। इसी बीच ही कुकी संगठनों की ओर से मैतेई समुदाय के एक धार्मिक स्थल पर हुए हमले ने फिर से बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं।
बीरेन सिंह का जाना ला पाएगा राज्य में सुधार

मणिपुर में बड़े पैमाने पर होने वाली हिंसा के बावजूद बीरेन सिंह अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी उनका खुल कर समर्थन कर रहा था? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मई, 2023 में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा शुरू होने के बाद भी बीरेन सिंह पर इस हिंसा को भड़काने के आरोप लगते रहे हैं। उन पर मैतेई संगठनों को हथियार मुहैया कराने तक के आरोप भी लगे। ऐसे में क्या उनके जाने से राज्य की कानून व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश की संभावना है या फिर हालात जश के तश बने रहेंगे। एक बड़ा प्रश्न है जिसका जबाव भविष्य के गर्भ गृह में छिपा हुआ है।
क्या मुख्यमंत्री की वीडियो क्लिप में थी कोई सच्चाई ?
मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई तबके को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की हाईकोर्ट की सिफारिश के बाद 3 मई 2023 को राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क गई थी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस हिंसा में अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि सैकड़ों करोड़ की संपत्ति जल कर राख हो गई है। इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापन का शिकार होकर मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड के राहत शिविरों में अनिश्चित जिंदगी गुजार रहे हैं। हिंसा शुरू होने के बाद से ही बीरेन सिंह सरकार पर मैतेई संगठनों को मदद करने के आरोप लगते रहे हैं। अभी हाल में वायरल एक ऑडियो क्लिप में बीरेन सिंह कथित रूप से एक मैतेई संगठन को सरकारी हथियारों की लूट में मदद करने का दावा करते सुनाई दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उस क्लिप की फोरेंसिक जांच का आदेश दिया है।
पर्वतीय और मैदानी इलाकों में विभाजन से सुधरेंगे हालात !

मणिपुर घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की अदालती सलाह के बाद साल 2023 में तीन मई को बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी। उसके बाद राज्य के पर्वतीय और मैदानी इलाकों के बीच विभाजन साफ उभर आया। पर्वतीय इलाकों में कुकी-जो और नागा जनजातियां ही रहती हैं। हालात इस कदर बेकाबू हो गए हैं कि अब उनमें से कोई भी एक-दूसरे के इलाके में पांव रखने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। ऐसे में अगर पर्वतीय और मैदानी इलाकों में विभाजन हो भी जाता है तो क्या कोई संभावना है कि क्षेत्र में हालात सुधर सकें।
म्यांमार से भी उग्रवादियों को मदद मिली !
मणिपुर पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि म्यांमार से लगी सीमा पर भी निगरानी बढ़ाई जा रही है ताकि वहां से हथियारों का जखीरा यहां नहीं पहुंच सके। दोनों समुदायों के तमाम गुटों के हथियार नहीं डालने तक राज्य में सामान्य स्थिति बहाल होना संभव नहीं है।