
इस बार जी20 की बैठक दक्षिण अफ्रीका में होने वाली है। इसके पीछे का कारण यूरोप एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों में तालमेल कायम किया जा सके।
केप टाउन (Shah Times): इस बार जी20 की बैठक दक्षिण अफ्रीका में होने वाली है। इसके पीछे का कारण यूरोप एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों में तालमेल कायम किया जा सके। लेकिन बैठक से पहले ही अमेरिका ने बड़ा झटका दे दिया है। अब ऐसे में सवाल है कि आखिर अमेरिका और अफ्रीका के बीच ऐसी क्या रार है जो अमेरिका ने जी20 की बैठक का बहिष्कार कर डाला है।
दक्षिण अफ्रीका से अमेरिका का तनाव
इसकी वजह दक्षिण अफ्रीका से अमेरिका का तनाव है। अमेरिका ने जी20 की बैठक में ना जाने की वजह दक्षिण अफ्रीका के नए भूमि अधिग्रहण कानून और कथित “अमेरिका विरोधी” रुख को बताया है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बुधवार देर रात सोशल मीडिया पर घोषणा की है कि वह 20-21 फरवरी को जोहानिसबर्ग में होने वाली बैठक में शामिल नहीं होंगे। अपनी पोस्ट में रुबियो ने दक्षिण अफ्रीका पर “बहुत गलत काम करने” का आरोप लगाया, जिसमें “निजी संपत्ति का अधिग्रहण” और जी20 मंच का उपयोग विविधता, समानता और समावेशन (डीईआई) नीतियों और जलवायु-केंद्रित एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए करना शामिल है।
कूटनीतिक दरार का बन रहा है हिस्सा
अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के बीच यह एक कूटनीतिक दरार को दिखाता है, क्योंकि फिलहाल दक्षिण अफ्रीका जी20 की अध्यक्षता कर रहा है। इस फैसले के कारण रुबियो अपने कई वैश्विक समकक्षों से मिलने का मौका भी खो देंगे, जिनमें रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भी शामिल हैं।
अमेरिका-दक्षिण अफ्रीका विवाद
इस विवाद के केंद्र में दक्षिण अफ्रीका का नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम 13, 2024 है, जो सार्वजनिक हित में मानी जाने वाली भूमि को बिना मुआवजे के अधिग्रहण की अनुमति देता है। यह कानून पिछले महीने पारित किया गया था और इसका उद्देश्य रंगभेदी शासन (अपार्थाइड) के दौरान पैदा हुई असमानताओं को दूर करना है।

दक्षिण अफ्रीकी सरकार का तर्क
दक्षिण अफ्रीकी सरकार का कहना है कि अधिग्रहण कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करेगा और मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जाएगा, लेकिन इस कानून को अमेरिका के रूढ़िवादी हलकों, विशेष रूप से पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, की ओर से कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी है।
ट्रंप ने आते ही दी थी धमकी
पिछले नवंबर में चुनाव जीतकर दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बने ट्रंप ने पिछले सप्ताहांत एक कड़ी प्रतिक्रिया जारी की थी। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका “भूमि जब्त कर रहा है” और “कुछ विशेष वर्गों के लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार कर रहा है।” उन्होंने यह भी धमकी दी कि जब तक इस मामले की जांच नहीं होती, अमेरिका दक्षिण अफ्रीका को दी जाने वाली सारी वित्तीय सहायता रोक देगा।
विरोध का एलन मस्क ने भी किया समर्थन
इस विरोध को दक्षिण अफ्रीका में जन्मे अरबपति एलन मस्क ने भी बढ़ावा दिया है, जो ट्रंप के करीबी माने जाते हैं। मस्क ने प्रिटोरिया सरकार पर “खुले तौर पर नस्लभेदी संपत्ति कानून” लागू करने का आरोप लगाया और अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस कानून के खिलाफ आवाज उठाई।
दक्षिण अफ्रीका का आरोपों पर यह था जबाव
दक्षिण अफ्रीकी नेताओं ने इस आलोचना को सख्ती से खारिज करते हुए कहा है कि यह कानून संवैधानिक है और लंबे समय से लंबित भूमि सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने गुरुवार को एक राष्ट्रीय संबोधन में कहा कि उनकी सरकार किसी भी समूह को अनुचित रूप से निशाना नहीं बना रही है। उन्होंने कहा, “हम राष्ट्रवाद, संरक्षणवाद और संकीर्ण स्वार्थ की राजनीति के बढ़ते प्रभाव को देख रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका, एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में, इन चुनौतियों के बावजूद अडिग रहेगा। हम एक सशक्त राष्ट्र हैं और किसी के दबाव में नहीं आएंगे।”
दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री रोनाल्ड लामोला का बयान
दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री रोनाल्ड लामोला ने भी अमेरिकी आरोपों को नकारते हुए कहा कि उनका देश अमेरिका के साथ रचनात्मक संवाद करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून मनमानी जब्ती की अनुमति नहीं देता है और संपत्ति मालिकों के लिए उचित सुरक्षा प्रावधान रखे गए हैं। दक्षिण अफ्रीकी सरकार का कहना है कि यह कानून देश के संविधान के अनुरूप है, जो सार्वजनिक हित में भूमि सुधार की अनुमति देता है।
मामले पर विशेषज्ञों का तर्क
विशेषज्ञों के अनुसार, इस कानून में अधिकतर मामलों में मुआवजे का प्रावधान है, जबकि केवल उन्हीं मामलों में कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा, जहां भूमि पर लंबे समय से कब्जा नहीं किया गया है, वह अनुपयोगी है, या अवैध रूप से अधिग्रहित की गई है। दक्षिण अफ्रीका में विदेशियों के प्रति हिंसा पिछले कुछ समय में बढ़ी है।
दोनों देशों के संबंध हो सकते हैं खराब
जी20 बैठक का बहिष्कार करने का अमेरिका का फैसला वॉशिंगटन और प्रिटोरिया के बीच कूटनीतिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। हालांकि अमेरिका अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका का एक प्रमुख आर्थिक साझेदार बना हुआ है, लेकिन दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद बढ़े हैं, जिनमें यूक्रेन युद्ध पर दक्षिण अफ्रीका की तटस्थ नीति और चीन के साथ बढ़ते संबंध शामिल हैं।
अमेरिका की गैरहाजिरी का वैश्विक प्रभाव
अमेरिका के इस बैठक से हटने से जी20 के अन्य देशों के साथ उसके संबंधों पर असर पड़ सकता है। इस बैठक में भाग नहीं लेने से अमेरिका खुद को वैश्विक आर्थिक नीति, जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय विकास पर प्रमुख चर्चाओं से अलग कर सकता है।
ट्रंप के आने से पहले ही जताई थी चिंता
ट्रंप के आने से पहले ही जी20 में उनकी नीतियों को लेकर चिंता थी। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की गैर-मौजूदगी से जी20 में एक खालीपन पैदा हो सकता है, जिसे चीन जैसे प्रभावशाली देश भर सकते हैं। चीन पहले ही दक्षिण अफ्रीका की जी20 अध्यक्षता को समर्थन देने की बात कह चुका है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के राजदूत ने अमेरिका की अनुपस्थिति के बीच दक्षिण अफ्रीका की जी20 अध्यक्षता का समर्थन करने की घोषणा की।